Monday, May 20, 2024
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हरदोई में आज भी मौजूद है वो कुंड, जहां जली थीं होलिका

हरदोई: आज फाल्गुन मास की पूर्णिमा है आज रात होलिका दहन के बाद कल सुबह होली का त्योहार धूमधाम से देशभर में मनाया जाएगा.  आज हम इस लेख में आपको होलिका दहन के इतिहास की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से है संबंध

उत्तर प्रदेश में एक जिला है हरदोई, माना जाता है कि आधुनिक होली के बीज इसी शहर से पड़े थे. आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्‍यप की नगरी के नाम से जाना जाता था. हां, वहीं हिरण्यकश्‍यप जो खुद को भगवान से बड़ा बताने लगा था. सबसे पहले ये जान लीजिए की हरदोई नाम कैसे पड़ा. हरि-द्रोही का मतलब था भगवान का शत्रु. हिरण्यकश्‍यप भगवान को बिलकुल नहीं मानता था. इसीलिए हिरण्यकश्‍यप की राजधानी का नाम हरी द्रोही था, जो आज का हरदोई नाम से जाना जाता है.

हरदोई से मानी जाती है होली की शुरुआत

प्राचीन काल से ही मान्यता है कि इसी हरदोई में हिरण्यकश्‍यप की बहन होलिका जलकर राख हो गई थी और उसी के बाद यहां के लोगों ने खुश होकर होली का उत्सव मनाया था. हिरण्यकश्‍यप भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था और उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. इसी बात को लेकर पिता हिरण्यकश्‍यप पुत्र प्रहलाद से नाराज रहते थे.
हिरणकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को प्रताड़ित करने के लिए कभी उसे ऊंचे पहाड़ों से गिरवा दिया, कभी जंगली जानवरों से भरे वन में अकेला छोड़ दिया पर प्रहलाद की ईश्वरीय आस्था टस से मस न हुई और हर बार वह ईश्वर की कृपा से सुरक्षित बच निकला. जब हिरणकश्यप को कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया और प्रहलाद का वध करने के लिए कहा. होलिका को आग में ना जलने का वरदान मिला था
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हरदोई में मौजूद है होलिका कुंड

हिरणकश्यप ने बहन होलिका से बेटे प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए कहा जिससे प्रहलाद जलकर भस्म हो जाए, लेकिन भगवान की कृपा से हुआ उल्टा यानि होलिका जब प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठीं तो उनकी शक्ति कमजोर पड़ गई. होलिका खुद जलकर राख हो गई और भक्त प्रहलाद बच गए. हरदोई में आज भी वो कुंड मौजूद है जहां होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी थीं.
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होलिका की राख उड़ाकर मनाया था उत्सव

होलिका के जलने के बाद भगवान बिष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरणकश्यप का वध कर दिया. होलिका के जलने और हिरणकश्यप के वध के बाद लोगों ने यहां होलिका की राख को उड़ाकर उस्तव मनाया. कहा जाता है मौजूदा वक्त में अबीर-गुलाल उड़ाने की परंपरा की शुरूआत यहीं से शुरू हुई.

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